होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं, बल्कि यह प्रेम, सौहार्द्र, और आपसी सद्भाव का प्रतीक है। यह पर्व हमें भेदभाव मिटाकर एकता के रंग में रंगने की प्रेरणा देता है |



यह सनातन धर्म का ऐसा त्योहार है जिसमे किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होता
न कोई गोरा – न कोई काला
होली के त्यौहार में सभी रंगों में रंगे होते है जिसे जो रंग पसंद होता है वो उस रंग से होली खेलता है, अलग – अलग रंगों मे रंग कर सभी होली की मस्ती में खूबसूरत दिखते हैं – गोरे और काले जैसा रंग भेद समाप्त हो जाता है |
न कोई अमीर – न कोई गरीब
सामान्यतः होली के त्यौहार में सभी अपने पुराने कपड़े पहनते है जिन्हे वे दैनिक उपयोग में लेना बंद कर चुके होते है, जिससे कपड़ों से दिखने वाला अमीरी और गरीबी का भेदभाव भी समाप्त हो जाता है |
राग – रंग और मौज मस्ती का त्यौहार
होली का त्यौहार राग – रंग और मौज मस्ती के लिए जाना जाता है। होली एक सांस्कृतिक और पारंपरिक उत्सव है। विशेषकर हिन्दी भाषी क्षेत्र में होली बहुत धूमधाम के साथ मनाई जाती है। होली में युवा रंग और पिचकारी लेकर निकल पड़ते हैं, चारों ओर अबीर, गुलाल और रंग का महोल होता है, हर तरफ लोग मस्ती में झूमते व एक दूसरे पर अबीर−गुलाल लगाते है। यह त्यौहार प्रेम, सौहार्द्र, सामाजिक समानता, एकता और अखण्डता का प्रतीक है। होली मनाते समय जात−पात, छोटा−बड़ा जैसा भी कोई भेदभाव नहीं होता। सभी मिल−जुल कर यह त्यौहार मनाते हैं।
होली में मतवाले रंगों के साथ गीत−संगीत में झूमते नजर आते हैं । लोग अपनी पुरानी रंजिशों को भूल कर एक दूसरे को रंग लगाते हुए होली कि बधाई देते हैं |
देश मे बहुत प्रसिद्ध है बरसाने की होली

देश में बरसाने की होली बहुत प्रसिद्ध है, यहाँ होली रंग लगाकर डांडिया और लट्ठ मार कर खेली जाती है | यहाँ की होली को देखने लोग दूर – दूर से आते हैं,
ब्रज में रंगोंत्सव बसंत पंचमी के दिन होलिका दहन के लिए डांडा लगाने से शुरू हो जाता है,, फिर महाशिवरात्रि के दिन श्रीजी मंदिर में 56 भोग का प्रसाद राधारानी को लगाया जाता है फिर अष्टमी के दिन बरसाने के लोग नंदगाँव जाकर होली का निमंत्रण देते है,

नवमी के दिन नंदगाँव के लोग 6 किलोमीटर पैदल चलकर बरसाने होली खेलने आते हैं, उनका पहला पड़ाव पीली पोखर होता है राधारानी के दर्शन के बाद रंगीली गली चौक पर शुरू होती है सबसे आकर्षक लट्ठ मार होली, जिसे वह की भाषा मे होरि कहा जाता है, माना जाता है कि वहाँ लट्ठ मार होली 16 वीं शताब्दी से खेली जा रही है | लट्ठ मार होली में नंदगाँव के पुरुष गुलाल छिड़क कर बरसाने की महिलाओं को चकमा देकर राधारानी मंदिर में झण्डा फहराने का प्रयास करते है और बरसाने की महिलायें उन्हे लट्ठ से खदेड़ती है | इस उत्सव को देखने देश – विदेश से लोग आते है और उत्सव के रंग में रंग कर आनंदित होते है |
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