नहीं रहे पद्मश्री कवि सुरेंद्र दुबे – मगर दिलों में टाइगर जिंदा है ….

सुरेन्द्र दुबे

छत्तीसगढ़ के हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का आज गुरुवार को हार्ट अटैक से निधन हो गया |

रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में उनका इलाज चल रहा था और यहीं उन्होंने अंतिम सांसें ली, एक आयुर्वेदिक चिकित्सक और कवि के रूप में उनका जीवन सदेव याद किया जाएगा |

उनकी कविताओं की एक एक पंक्तिया लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देती थी

ताली बजाओ सांस लेना है – टाइगर अभी जिंदा है जैसी उनकी कविताओं की कई पंक्तिया लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देती थी, अपने ऊपर ही व्यंग करना उनकी सबसे बड़ी कला थी | डॉ. सुरेंद्र दुबे ने अपने व्यंग्य और हास्य से सामाजिक विसंगतियों, राजनीतिक हलचलों और मानवीय संवेदनाओं को छुआ। उन्होंने हमें सिखाया कि हँसी सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक क्रांति हो सकती है।

सरल नहीं इतनी उपलब्धि और बेहद सरल जीवन का संगम

पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक, दुबे का जन्म 8 अगस्त 1953 को बेमेतरा, दुर्ग, भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में हुआ था। उन्होंने पांच पुस्तकें लिखी हैं, भारत सरकार ने उन्हें साल 2010 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया था। वे 2008 में काका हाथरसी से हास्य रत्न पुरस्कार के प्राप्तकर्ता भी रहे है। उन्होंने पाँच पुस्तकें लिखीं, जो हास्य-व्यंग्य साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं।




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