शारदीय नवरात्रि विशेष
शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि – ज्योतिषाचार्य डॉक्टर अनिल तिवारी

इस साल हाथी पर आएगी माँ और हाथी पर जाएगी
प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा हाथी पर आएंगी और हाथी पर ही बैठकर जाएंगी ।
गुरुवार के दिन हस्त नक्षत्र ऐन्द्र व ब्रह्म योग कन्या राशि के चन्द्र व कन्या के ही सूर्य में यदि देवी आराधना का पर्व शुरू हो, तो यह देवीकृपा व इष्ट साधना के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।
आगमन वाहन –
“शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥”
रविवार व सोमवार को हाथी, शनिवार व मंगलवार को घोड़ा, गुरुवार व शुक्रवार को पालकी, बुधवार को नौका आगमन।
इस साल शारदीय नवरात्रि सोमवार से प्रारंभ हो रही हैं इसके अनुसार देवी मां गज (हाथी) पर विराजकर कैलाश से धरती पर आ रही हैं।

प्रस्थान वाहन :-
- रविवार व सोमवार भैंसा,
- शनिवार और मंगलवार को सिंह,
- बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी,
- गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान
अतः मां का आगमन हाथी पर होगा जो समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक है। माता की विदाई भी इस वर्ष गज (हाथी) पर होगी। देवी भागवत के अनुसार जब मां का आगमन व विदाई हाथी पर होती है देश में खुशहाली का वातावरण निर्मित होता है व पर्याप्त वर्षा से जनता प्रसन्न होती है। नवरात्रि में घटस्थापना, ज्वार रोपण नवदुर्गाओं की क्रमशः पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती के सात सौ महामंत्रों से हवन, कन्या पूजन व अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुल देवी पूजन व उपवास का विशेष महत्व है।
साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।
घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त :-
नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।
कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
देवी पुराण के अनुसार द्विस्भाव लग्नयुक्त आश्विन शुक्ल प्रातः काल में देवी का आह्वान एवं घट स्थापना करने का विधान है। इस दिन कन्या लग्न प्रातः 06:09 से 08:05 तक रहेगी। यह समय घट स्थापना के लिए श्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त अभिजीत मुहूर्त दिन 11:47 से 12:38 तक भी कलश स्थापना की जा सकती है।
- कन्या लग्न प्रारम्भ 22, सितम्बर को प्रातः 06:09 बजे से।
कन्या लग्न समाप्त 22, अक्टूबर को प्रातः 08:05 बजे तक। - प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ 21 सितम्बर , को रात्रि 01:22 बजे से।
प्रतिपदा तिथि समाप्त 22 सितंबर , को रात्रि 02:55 बजे तक |
नवरात्रि की तिथियाँ :-
पहला नवरात्र – प्रथमा तिथि 22 सितम्बर 2025, सोमवार, शुक्ल योग माँ शैलपुत्री की उपासना।
दूसरा नवरात्र – द्वितीया तिथि, 23 सितम्बर, मंगलवार, ब्रह्म योग, माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।
तीसरा नवरात्र – तृतीया तिथि, 24 सितम्बर, बुधवार, ऐन्द्र योग, माँ चंद्रघंटा की उपासना।
तीसरा नवरात्र – तृतीया तिथि 25 सितम्बर, गुरुवार, वैधृति योग, माँ चंद्रघंटा की उपासना।
चौथा नवरात्र – चतुर्थी तिथि, 26 सितम्बर, शुक्रवार, विष्टि योग, माँ कुष्मांडा जी की उपासना।
पांचवा नवरात्र – पञ्चमी तिथि, 27 सितम्बर शनिवार, विषकुम्भ योग, माँ स्कन्द की उपासना।
छठा नवरात्र – षष्ठी तिथि, 28 सितम्बर, रविवार, प्रीती योग, माँ कात्यायनी की उपासना।
सातवा नवरात्र – सप्तमी तिथि, 29 सितम्बर, सोमवार, आयुष्मान योग, माँ कालरात्रि की उपासना।
आठवा नवरात्र – अष्टमी तिथि, 30 सितम्बर, मंगलवार, सौभाग्य योग माँ महागौरी की उपासना।
नौवा नवरात्र – नवमी तिथि, 01 अक्टूबर, बुधवार, शोभन योग माँ सिद्धिदात्री की उपासना।
दशहरा एवं दुर्गा विसर्जन – दशमी तिथि, 02 अक्तूबर 2025, गुरुवार।
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री :-

जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
रोली , मौली
इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल, नारियल, लाल कपडा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती
भगवती मंडल स्थापना विधि :-
जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी – गणेश जी का पुजन करें।
भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।
दुर्गा पूजन सामग्री :-
पंचमेवा पंचमिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।
घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि :-
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।
आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
“ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें
कब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें –
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:,
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
दुर्गा पूजन हेतु संकल्प :-
पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2081, तमेऽब्दे काल नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदायां तिथौ गुरु वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये।
दुर्गा पूजन विधि :-
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि॥
आसन :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
अर्घ्य श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥
आचमन श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥
स्नान :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
(स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े)
पंचामृत स्नान :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥
(पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।)
गन्धोदक-स्नान :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
(गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।)
शुद्धोदक स्नान :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि
(शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।)
वस्त्र :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि ॥
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।)
सौभाग्य सू़त्र :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि ॥
(मंगलसूत्र या हार पहनाए।)
चन्दन :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पयामि ॥
(चंदन लगाए)
हरिद्राचूर्ण :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हरिद्रां समर्पयामि ॥
(हल्दी अर्पण करें।)
कुंकुम : – श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पयामि ॥
(कुमकुम अर्पण करें।)
सिन्दूर :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि ॥
(सिंदूर अर्पण करें।)
कज्जल :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पयामि ॥
{काजल अर्पण करें।)
दूर्वाकुंर :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरानि समर्पयामि ॥
(दूर्वा चढ़ाए।)
आभूषण :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणानि समर्पयामि ॥
(यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।)
पुष्पमाला :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पयामि ॥
(फूल माला पहनाए।}
धूप :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापयामि॥
(धूप दिखाए।)
दीप :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शयामि॥
(दीप दिखाए।)
नैवेद्य :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि॥
नैवेद्यान्ते त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पयामि।
{मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।}
फल :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फलानि समर्पयामि॥
(फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े)
ताम्बूल :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पयामि॥
(लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।)
दक्षिणा :- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दक्षिणां समर्पयामि॥
(यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछ दे सकें।)
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