सरस्वति महाभागे ,विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि, विद्यां देहि नमोस्तुते
इस साल 2 फ़रवरी को है बसंत पंचमी, उस दिन पञ्च महायोग होने से बसंत पंचमी बेहद शुभ हो गयी है



क्यों मनाते है बसंत पंचमी को – माँ सरस्वती की आराधना के दिन के रूप में ?
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने के पश्चात,मनुष्य की रचना की| मनुष्य की रचना के पश्चात उन्होने अनुभव किया कि मनुष्य की रचना मात्र से ही सृष्टि की गति को संचालित नही किया जा सकता, उन्होने अनुभव किया कि नि:शब्द सृष्टि का औचित्य नही है – क्यों कि शब्द हीनता के कारण विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम क्या होगा ? और अभिव्यक्ति के माध्यम के नही होने के कारण ज्ञान का प्रसार हो पाना भी असंभव है |
तब ब्रह्माजी ने विष्णु जी से अनुमति लेकर एक चर्तुभुजी स्त्री की रचना की, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पडा | सरस्वती ने जब अपने वीणा को झंकृत किया तो समस्त सृष्टि मे नाद का प्रादुर्भाव हुआ | चुंकि सरस्वती का अवतरण माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था अत: इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है | क्योंकि शब्द जहाँ एक ओर ज्ञान और विचारों की आदान प्रदान का माध्यम है वहीं दूसरी ओर शब्द ही भावनाओं की अभिव्यक्ति का भी स्त्रोत है, इसीलिये यह ज्ञान को समर्पित पर्व तो है ही, साथ ही भावनात्मक सम्बंधों की शुरुआत का पर्व भी है |
शक्ति की आराधना भी है सरस्वती प्रधान
मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण, विष्णुर्मोत्तरपुराण तथा अन्य ग्रंथों में भी देवी सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है । इन धर्मग्रंथों में देवी सरस्वती को सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंस वाहिनी आदि नामों से भी संबोधित किया गया है । माँ सरस्वती को सरस्वती स्त्रोत्र में ‘श्वेताब्ज पूर्ण विमलासन संस्थिते’ अर्थात श्वेत कमल पर विराजमान या श्वेत हंस के उपर बैठे हुए बताया गया है । दुर्गा सप्तशती में माँ आदिशक्ति के महाकाली महालक्ष्मी और महा सरस्वती रूपों का वर्णन और महात्म्य 13 अध्यायों में बताया गया है | शक्ति को समर्पित इस पवित्र ग्रंथ में 13 मे से 8 अध्याय माँ सरस्वती को ही समर्पित है | जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि नाद और ज्ञान का हमारे आध्यात्म में बहुत ज्यादा महत्व है |
2 फरवरी को है पञ्च महायोग ….
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है | इस दिन शिव योग सिद्धि योग, स्थिर योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग है| जो की सभी के लिए लाभदायक है |
कुंभकर्ण सोता ही रहा माँ सरस्वती के चातुर्य से …..

सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है । कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की । जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने निवेदन किया कि आप इसको वर तो दे रहे हैं लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ती का है और अपने ज्ञान और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग कर सकता है ।
तब सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं । सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- ‘स्वप्न वर्षाव्यनेकानि । देव देव ममाप्सिनम ।’ यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूँ, यही मेरी इच्छा है । इस तरह त्रेता युग में कुम्भकर्ण सोता ही रहा और जब जागा तो भगवान श्रीराम उसकी मुक्ति का कारण बने। देवों की सहायता करने के कारण सरस्वती जी पूजनीय हो गयीं ।
माँ सरस्वती की विभिन्न स्वरूप
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजा युक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है । स्कन्द पुराण में सरस्वती जटा – जुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं । “रूप मंडन” में वाग्देवी का शांत, सौभ्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है । सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुम्भकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है । दुर्गा सप्तशती में भी सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है |
नील सरस्वती है साक्षात लक्ष्मी
शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन ही शिव जी ने माँ पार्वती को धन और सम्पन्नता की अधिष्ठात्री देवी होने का वरदान दिया था | उनके इस वरदान से माँ पार्वती का स्वरूप नीले रंग का हो गया और वे ‘नील सरस्वती’ कहलाई | शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन नील सरस्वती का पूजन करने से धन और सम्पन्नता से सम्बंधित समस्याओं का समाधान होता है | वसंत पंचमी की संध्याकाल को ‘ऐं ह्रीं श्रीं नील सरस्वत्यै नम:’ मंत्र का जाप कर गौ सेवा करने से धन वृद्धि होती है |
अक्षराभ्यास का दिन है वसंत पंचमी

वसंत पंचमी के दिन बच्चों को अक्षराभ्यास करवाया जाता है | अक्षराभ्यास से तात्पर्य यह है कि विध्या अध्ययन प्रारम्भ करने से पहले बच्चों के हाथ से अक्षर लिखना प्रारम्भ करवाना | इस हेतु मता पिता अपने बच्चे को गोद में लेकर बैठें बच्चे की हाथ से गणेश जी को पुष्प समर्पित करवायें और स्वस्तिवचन इत्यादि का पाठ कर के बच्चे की जुबान पर शहद से ‘ऐं’ लिखें तत्पश्चात स्लेट पर खडिया से या कागज पर रक्त चन्दन का, स्याही के रूप में उपयोग करते हुए अनार की कलम से ‘अ’ और ‘ऐं’ लिखवा कर अक्षराभ्यास करवायें | इस प्रक्रिया के पश्चात बच्चे से इस मंत्र का प्रतिदिन उच्चारण करवायें:
सरस्वती महामाये दिव्य तेज स्वरूपिणी|
हंस वाहिनी समायुक्ता विध्या दानं करोतु मे |
इस प्रक्रिया को करने से बच्चे की बुद्धि तीव्र होगी इस मंत्र का जाप के बडे बच्चे भी वसंत पंचमी से प्रारम्भ कर सकते है जिनकी स्मरण शक्ति कमजोर है |
सभी समस्याओं का होगा समाधान
डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार इस वर्ष रविवार – 2 फरवरी को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है | इस दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र है जो कि शनि प्रधान ही है |
- बुद्धि विकास के लिए: लग्न कुंडली में पंचम भाव यदि पाप ग्रह से ग्रस्त है तो बुद्धि का विकास ठीक से नही हो पाता | ऐसे सभी जातकों को वसंत पंचमी के दिन काली माँ के दर्शन कर पेठा या कोई भी फल अर्पित कर “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:” मंत्र का सस्वर जाप करना चाहिये |
- न्यायिक मामलो, पति पत्नि सम्बंधी विवादों या स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानियों के समाधान हेतु शनिवार को दुर्गा सप्तशति में वर्णित ‘अर्गला स्त्रोत्र’ और ‘कीलक स्त्रोत्र’ का पाठ कर श्वेत वस्त्र का दान करने से लाभ होगा |
- यदि आप संगीत के क्षेत्र में सफल होना चाहते है तो माँ सरस्वती का ध्यान कर के ‘ह्रीं वाग्देव्यै ह्रीं ह्रीं ‘ मंत्र का जाप करें | शहद का भोग लगा कर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करे |
अपनी राशि अनुसार करें – माँ शारदे की आराधना होगा बड़ा फायदा ….
डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे जी के अनुसार अगर अपनी राशि के अनुसार आप मंत्रजाप करते है तो आपको अधिक फलदायक होगा , वसंत पंचमी के दिन से इन मंत्रों का यथायोग्य जाप प्रारम्भ करें और लगातार करते रहें तो बुद्धि कुशाग्र होगी तथा निर्णय भी सही होंगें |
1. मेष : मंत्र “ह्रीं सप्ताश्व: सप्त रज्जुश्च अरुणो मे प्रसीदतु” का उच्चारण प्रतिदिन प्रात:काल करें ।
2. वृषभ : मंत्र, “विध्या वारिधी ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रौं ह्रं हेरम्बाय नम:” का जाप प्रतिदिन करें ।
3. मिथुन : चन्द्र मंत्र “दधि शंख तुषाराभां चन्द्रमसे नम:” का जाप प्रतिदिन प्रात: और सायंकाल करें ।
4. कर्क : हनुमत मंत्र “हं हनुमतये नम: रुद्रात्मकाय हुं फट” का जाप प्रतिदिन करें ।
5. सिंह : कृष्ण भगवान के मंत्र “सच्चिदानन्द स्वरूपाय श्री कृष्णाय नम:” का जाप करें।
6. कन्या : लक्ष्मी जी के मंत्र, “ह्रीं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्यै नम:” का जाप शुक्रवार से प्रारम्भ करें।
7.तुला : सरस्वती मंत्र, “सरस्वत्यै नमो नित्यम भद्रकाल्यै नमो नम:” का जाप प्रतिदिन सायंकाल करें ।
8. वृश्चिक : मंत्र, “वन्दे विष्णुं भव भय हरं सर्व लोकैक नाथम” का जाप प्रतिदिन प्रात:काल करें।
9. धनु : शनि मंत्र, “प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:” का जाप शनिवार से प्रारम्भ कर प्रतिदिन करें ।
10. मकर : दुर्गा जी के मंत्र, “महा रात्रि महाविध्ये नारायणी नमस्तुते” का जाप प्रतिदिन प्रात:काल करें।
11. कुम्भ : गणेश मंत्र, “सर्व विध्या प्रदायिने शूर्प कर्णाय गजाननाय नम:” का जाप संध्या के समय करें।
12. मीन : शिव जी के मंत्र, “वेदांत वेध्यं विभुं शिवशंकराय ह्रीं” का जाप प्रतिदिन प्रात:काल करें।
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