हमारे यहां अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया का दिन अपने आप में अबूझ स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। इस दिन शुभ कार्यों को करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। अक्षय तृतीया भगवान परशुराम का अवतरण दिवस है, इस दिन को आमतौर पर आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल अक्षय तृतीया या आखा तीज कल 30 अप्रैल 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।
आइए जानते हैं क्या है पूजा विधि और महत्व ज्योतिषाचार्य डॉक्टर अनिल तिवारी जी से –

अक्षय तृतिया तिथि :-
वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि अक्षय तृतीया इस बार 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। तृतीया 29 अप्रैल को शाम 5:32 बजे से प्रारंभ होकर 30 अप्रैल को दोपहर 2:15 बजे तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी तिथि होने से 30 अप्रैल को तृतीया मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त : –
इस दिन पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 06 घंटे 37 मिनट की है। इस दौरान पूजन के साथ गृह प्रवेश भी किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु व लक्ष्मी माता की पूजा उपासना होती है, इस दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक पूजा उपासना का श्रेष्ठ शुभ मुहूर्त रहेगा।

खरीदारी के लिए चौघड़िये :-
अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी के आभूषण, बर्तन, वस्त्र, वाहन इत्यादि खरीदने की परंपराएं रही है अतः आप इन शुभ चौघड़ियों में संबंधित वास्तुएं खरीद सकते हैं।
अक्षय तृतीया के साथ व्याप्त शुभ चौघड़िया मुहूर्त- पहला शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 41 मिनट से सुबह 09 बजे तक रहेगा।
दूसरा मुहूर्त सुबह 10 बजकर 39 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
अक्षय तृतीया का महत्व :-
अक्षय का अर्थ है अविनाशी जो हमेशा बना रहता है और तृतीया का अर्थ है शुक्ल पक्ष का तीसरा दिन, ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन शुभ कार्य करते हैं, वह हमेशा के लिए बना रहता है और कभी खत्म नहीं होता। इस दिन लोग नए व्यापारिक उपक्रम, नौकरी, गृह प्रवेश शुरू करते हैं और धार्मिक कार्य करते हैं। इस दिन सोना, चांदी और आभूषण खरीदने के लिए शुभ माना जाता है और यह भी माना जाता है कि ये चीजें उनके जीवन में सफलता, सौभाग्य और समृद्धि लाती हैं।
अक्षय तृतीया व परम्पराएं :-
यह दिन नई शुरुआत के लिए, विशेष रूप से विवाह, सगाई , गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ और अन्य निवेशों के लिए शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया को सनातन संस्कृति में एक शुभ दिन माना जाता है और यह समृद्धि की अनंत बहुतायत का प्रतिनिधित्व करता है। देवी-देवताओं को प्रार्थना अर्पित करना भी पूजा का हिस्सा है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है, विशेष पूजा की जाती है, इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं।

दान :-
इस दिन दान-सेवा इत्यादि करने से भी अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है अतः इस दिन काफी लोग मंदिरों व गौशाला में दान पुण्य करते हैं।
जप :-
अक्षय तृतीया अक्षय फल प्रदान करने वाली मानी गई है अतः इस दिन मंत्र जप- नाम जप- रामचरितमानस भगवतगीता- श्रीविष्णु सहस्त्रनाम- गोपाल सहस्त्रनाम- सुंदरकांड- श्रीहनुमान चालीसा- श्रीराम रक्षा स्तोत्र इत्यादि के पाठ विधि विधान से किए जाते हैं।
अक्षय तृतीया पूजा विधि :-
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के जल में थोड़ा गंगाजल मिला लें. पूजा स्थल और आसपास की जगह को साफ करें. फिर भगवान श्रीविष्णु, माता लक्ष्मीजी की तस्वीर- मूर्तियां स्थापित करें।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का दूध, शहद, दही, घी, शक्कर और जल के मिश्रण से अभिषेक करें।
- भगवान विष्णुजी को तुलसी पत्र अर्पित करें, अक्षत और चंदन का टीका, और माता लक्ष्मी को कुमकुम का टीका लगाएं।
- भगवान श्री विष्णु, माता लक्ष्मी को फल पुष्प अर्पित करें। फल में विशेष कर केला व गुलाब, कमल, गुड़हल, मोगरा, गेंदा इत्यादि पुष्प अर्पित करें।
- जौ, गेहूं, तिल, चना दाल, दूध से बने मीठे पकवान, खीर और अन्य घर का बना शाकाहारी भोजन का भोग लगाएं. इसके बाद कपूर, घी का दीया और धूप जलाएं।
- पूरे परिवार के साथ मिलकर धूप, दीप, कपूर इत्यादि से भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी जी की आरती करें।।
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