शिव सामान दाता नहीं… 60 वर्षों बाद पड़ रही “त्रियोग की शिवरात्रि”, भद्रा की छाया लेकिन कर सकते हैं पूजन

सभी दिशाओं के स्वामी, जल, थल, आकाश और यहाँ तक कि पाताल के स्वामी भी शिव ही हैं। संक्षेप में यदि कहें तो, ‘जो शिव नही है वह शव है’, यह कहना सबसे सही होगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाये तो तो विश्व की सबसे प्राचीन सिन्धु घाटी की सभ्यता, जो कि मनुष्य के अस्तित्व का प्राचीनतम प्रमाण है, उसमे भी उत्खनन के समय जो अवशेष मिले उनमे पशुपति शिव की कई प्रतिमाएं और आकृतियों मिली, जो इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं कि शिव ही सब कुछ है।

शिव के अस्तित्व को लेकर धारणाएं भी बहुत हैं और जिज्ञासा भी बहुत हैं। शिव के स्वरूप और उनके अस्तित्व को लेकर जब मन में वैचारिक मंथन होता है, तो लगता है कि हमारा अपनी सांस, प्रश्वास या हृदय के स्पन्दन की चर्चा कर रहे हैं। ऐसा लगता है हमारा अपने मन और आत्मा की चर्चा कर रहे हैं, क्यों कि, ब्रह्माण्ड की रचना और इसमें जीवन के संचरण का कारक भी शिव को माना जाता है और प्रलय के देवता भी शिव ही हैं। समस्त आकारों के सृजनकर्ता शिव हैं तो स्वयं निराकार भी शिव ही हैं। अभिव्यक्ति के लिये स्वर के कारक महादेव स्वयं हैं और परम शांति के उद्भवकर्ता शिव ही हैं। स्वयं जटाजूट धारण करने वाले और विष प्रेरित सर्प को आभुषण के रूप में धार्न करने वाले शिव सभी ऐश्वर्य के अधिष्ठाता देव हैं।



ज्योतिषाचार्य डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार यदि शिवरात्रि त्रिस्पृशा अर्थात त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावास्या के स्पर्श युक्त हो, तो परमोत्तम मानी गई है। ‘स्मृत्यंतर’ में कहा गया है कि शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोष व्यापिनी ग्रहण करें। यहां प्रदोष शब्द से मतलब ‘रात्रि का ग्रहण’ है। ‘कामिक’ में भी कहा गया है कि सूर्य के अस्त समय यदि चतुर्दशी हो, तो उस रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं। 26 फरवरी को सूर्यास्त के समय चतुर्दशी है अत: इसी दिन शिवरात्रि मनाई जायेगी|

त्रियोग और एश्वर्य योग की शिवरात्रि

बुधवार 26 तारीख को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रात:कालीन त्रयोदशी और सायंकाल 5.22 के पश्चात चतुर्दशी तिथि है। इस दिन शिवरात्रि मनाई जायेगी। बुधवार कों यदि शिवरात्रि पड़े तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है| इसे एश्वर्य योग भी कहा जाता है| रात्रिकालीन गोचर में मंगल लग्नेश होकर अष्टम भाव मे है जो की विपरीत राज योग बना रहे हैं तथा सूर्य बुध और शनि, शनि प्रधान राशि मे त्रियोग बना रहे है| जो की अत्यंत लाभदायक है| उच्च का शुक्र राहू युक्त होकर शिव पूजन से होने वाले लाभ को भी दर्शा रहा है| शिवजी का पूजन प्रत्येक कों धनधान्य से परिपूर्ण करेगा| इस तरह यह सभी कष्टों से मुक्ति का तीन दिवसीय पर्व बन गया है।


भद्रा रहेगी लेकिन पूजन कर सकते हैं

26 तारीख को प्रात; 11.08 बजे से रात्रि 10.02 बजे तक भद्रा का प्रभाव है| इस मध्य में मकर राशी की भद्रा रहेगी| शास्त्रों में इसे पाताल लोक की भद्रा माना जाता है| अत; भरा का कोई प्रभाव नहीं है| अत: पूजन किया जा सकता है|



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